राजस्व की पहेलियां: जीएसटी का प्रवाह और चिंताजनक पहलू

मोटे तौर पर जीएसटी के बेहतर प्रवाह के बीच, कुछ रुझानों पर और ज्यादा छानबीन की जरूरत

October 07, 2023 11:06 am | Updated 11:06 am IST

मौजूदा वित्तीय वर्ष का आधा हिस्सा बीत जाने के बाद, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से प्राप्त देश का सकल राजस्व 9.92 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। यह अप्रैल और सितंबर 2022 के बीच के संग्रह की तुलना में 11.1 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान औसत मासिक राजस्व बेहतर होकर 1,65,418 करोड़ रुपये का रहा है। इस वित्तीय वर्ष में छह में से चार मौकों पर जीएसटी के खजाने ने 1.6 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार किया है। लगभग 1.63 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े के साथ, सितंबर माह का जीएसटी संग्रह औसत से थोड़ा कम रहा, लेकिन अगस्त के प्रवाह से 2.3 फीसदी ज्यादा रहा। अगस्त का प्रवाह तीन महीने के निचले स्तर पर था। त्योहारों का मौसम शुरू होने के साथ, इस तिमाही में 1.6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का संग्रह जारी रह सकता है। राजकोषीय लिहाज से, सरकार जीएसटी राजस्व को लेकर सहज स्थिति में है। जनवरी-मार्च 2024 की तिमाही के दौरान प्रवाह में कुछ कमी आने की गुंजाइश है क्योंकि केंद्रीय बैंक को इस दरमियान वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि पहली तिमाही के 7.8 फीसदी से घटकर 5.7 फीसदी रह जाने की आशंका है। इन आंकड़ों से मिलने वाले व्यापक दृढ़ता के संकेत से परे, नीति निर्माताओं द्वारा और जीएसटी परिषद की आज होने वाली बैठक में चिंता के कुछ पहलुओं पर बारीक विश्लेषण की दरकार है।

पहला, जीएसटी के प्रवाह की बढ़ोतरी में स्पष्ट मंदी आई है, जो सितंबर माह में घटकर 10.2 फीसदी रह गई है। यह जुलाई 2021 के बाद सबसे धीमी वृद्धि है। जुलाई और सितंबर के बीच औसत वृद्धि पहली तिमाही के 11.5 फीसदी से घटकर दूसरी तिमाही में 10.6 फीसदी रह गई। पिछले दो महीनों के दौरान घरेलू लेनदेन और सेवाओं के आयात में होने वाली वृद्धि धीमी होकर 14 फीसदी रह गई है, जोकि जून में 18 फीसदी थी। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा कि अगस्त में किए गए लेनदेन के आधार पर सितंबर माह के राजस्व में 2017-18 में जीएसटी व्यवस्था की शुरुआत के बाद से विभिन्न व्यवसायों से मिलने वाला लंबित बकाया भी शामिल है क्योंकि उन बकायों के भुगतान की अंतिम समय-सीमा 30 सितंबर थी। इसके अलावा, 1 अगस्त से पांच करोड़ रुपये से ज्यादा टर्नओवर वाली सभी फर्मों के लिए ई-चालान अनिवार्य हो गया, लिहाजा अनुपालन एक और दबाव हावी था। वास्तविक उपभोग और उत्पादन में बढ़ोतरी से पैदा हुई वृद्धि की सीमा का आकलन करने के लिए इन प्रभावों की पड़ताल करना जरूरी है। मिसाल के तौर पर, अगस्त के दौरान जारी किए गए रिकॉर्ड 9.34 करोड़ ई-वे बिल अब तक के उच्चतम राजस्व में तब्दील नहीं हो सके। इससे यह पता चलता है कि लेनदेन का आकार कम हो गया है। एक और हैरान करने वाला रुझान माल के आयात से होने वाले राजस्व में देखा गया है। माल का आयात इस साल चार गुना कम हो गया है। बेशक, इस साल दर्ज किए गए माल आयात के कम बिल कम जीएसटी में तब्दील होंगे। हालांकि, अगस्त माह में आयात नौ महीने के उच्चतम स्तर 58.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया, जोकि जुलाई के आयात बिल से 10.75 फीसदी ज्यादा है। फिर भी, सितंबर माह में संग्रहित राजस्व पिछले महीने की तुलना में 5.7 फीसदी कम रहा। इससे बात नहीं बनती। अधिकारियों को आयात से होने वाले राजस्व के रिसाव को रोकने के लिए गहराई से छानबीन करनी चाहिए।

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