आलोचनात्मक पत्रकारिता के प्रति खुद को असहिष्णु दिखा चुकी सरकार के लिए भी, न्यूज वेबसाइट ‘न्यूजक्लिक’ पर भाजपा-नीत शासन द्वारा की गयी कार्रवाइयां चरम प्रतिशोध और निर्लज्ज उत्पीड़न जैसी हैं। अभी तक, सरकार ने ऐसे किसी खास आरोप का खुलासा नहीं किया है, जिसके आधार पर इस वेबसाइट के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एक अन्य व्यक्ति की गिरफ्तारी, गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) जैसे कानूनों के बेहद कड़े प्रावधानों के तहत, की गयी। बताया जाता है कि ‘चीनी जुड़ाव वाले आतंकी मामले’ के लिए इस वेबसाइट की जांच की जा रही है, लेकिन ऐसा कोई लेख या सामग्री प्रकाश में नहीं लायी गयी है जो कथित तौर पर‘आतंकवाद’ या ‘चीन-समर्थक प्रोपेगैंडा’ से कोई जुड़ाव दिखाती हो। इस समाचार संगठन ने यह भी कहा है कि उसे न तो प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की प्रतिलिपि (कॉपी) दी गयी है, और न ही उन अपराधों का ब्योरा दिया गया है जिनका आरोप उस पर लगाया गया है। इसके बावजूद, उससे जुड़े पत्रकारों, सामग्री में योगदान देनेवालों और कर्मचारियों के यहां छापे मारे गये हैं। उनमें से कई के मोबाइल फोन और लैपटॉप जब्त किये गये हैं। इस वेबसाइट के खिलाफ कार्रवाई नयी नहीं है। वर्ष 2021 से ही उसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग द्वारा की जा रही है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किये गये हैं, लेकिन उसके खिलाफ कभी आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ। दिल्ली हाईकोर्ट ने, पहली नजर में मामला न्यूजक्लिक के पक्ष में पाते हुए, पुरकायस्थ को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया और संस्थान के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया। इसी तरह के मामले में आयकर विभाग द्वारा दायर शिकायत को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था।
ऐसा लगता है कि अभी की कार्रवाई की वजह न्यूयॉर्क टाइम्स का एक लेख है, जिसने न्यूजक्लिक के एक निवेशक के इरादों पर सवाल खड़ा किया और चीन सरकार से उसकी नजदीकी का आरोप लगाया, लेकिन उसने ऐसा कोई खास लेख सामने नहीं रखा है जिसे भारत के खिलाफ गैरकानूनी प्रोपेगैंडा माना जा सके। न्यूयॉर्क टाइम्स के इसी लेख के आधार पर सरकार के नुमाइंदों ने वेबसाइट के खिलाफ बदनामी और भ्रामक सूचनाओं का पहले बाकायदा अभियान छेड़ा। मंगलवार की कार्रवाइयां एक मीडिया संगठन को बलि का बकरा बनाने और, इस तरह, आलोचनात्मक पत्रकारिता को खामोश करने के मनोवेग से प्रेरित लगती हैं। कोई भी सरकार मीडिया संगठन की फंडिंग को लेकर महज शक की बिना पर पत्रकारों को इस निर्लज्जता से निशाना नहीं बना सकती और, इस तरह, अभिव्यक्ति की उस आजादी को कमजोर नहीं कर सकती जिसकी गारंटी संविधान के तहत दी गयी है। पुरकायस्थ को 1975 में आपातकाल के दौरान बेहद कड़े कानून, मेंटीनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी ऐक्ट (मीसा), के तहत झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर जेल में रखा गया था। उस वक्त वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र-एक्टिविस्ट थे। आज आपातकाल की आड़ के बिना ही इतिहास खुद को दोहराता लग रहा है।
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